Monday 11 May 2009

शरीर द्वारा ब्रह्माण्ड की खोज

जगद्गुरु महामहिम गुरुदेव द्वारा महामाया सागर रत्ना मानव धर्म ग्रन्थ पूरे विश्व में पहली बार अपने ही शरीर के द्वारा ब्रह्माण्ड की खोज और अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया है।इस ग्रन्थ में प्रस्तुत विषय सामग्री का आपको परिचय करा रहे हैं।१-मानव शरीर की संरचना एवं दैवीय गुन, भाग-२- ब्रह्म सत्ता यानि अपने ही शरीर की सत्ता, भाग ३-परम सत्ता परमात्मा की सत्ता, ४- पूर्ण सत्ता, ब्रह्माण्ड की सत्ता , ५- मानव शरीर में दुःख बीमारी कैसे प्रवेश करती है। और उनकी प्राकृतिक चिकित्सा कैसे की जाती है। ६- पञ्च भूत किस प्रकार शांत किए जाते हैं काम क्रोध, मोह, लोभ, और अंहकार , ७- विष व अमृत कम घोल कैसे अलग किया जाता है, ८- गुरुओं की पहली क्रियायें क्या होती हैं। , ९- ब्रह्माण्ड में कहाँ क्या और उनका स्वरुप कैसा १०- वाशीक्रिया के द्वारा शरीर से जीवात्मा को बाहर कैसे निकला जाता है। और वो ब्रह्माण्ड में कैसे चक्कर लगाती है।, ११ - भक्ति के तीन चक्र कैसे बनते हैं। १२- मानव के ग्रह उग्र रूप धारण क्यों करते हैं और उन्हें स्वयं ही शांत कैसे किया जाता है। १३- जीवात्मा चक्र कैसे चलता है और बार-बार शरीर कैसे बदलता है। १४- मनुष्य के न चाहते हुए भी आँखें ग़लत दिशा में क्यों देखतीं हैं। १५- गृहस्थ मानव की पहली क्रियायें क्या हैं। , १६ - भविष्य में सभी प्राणियों को खतरा अथवा विनाश कैसे होता है। १७- प्रथ्वी पर सब कुछ विनाश होने के बाद उत्त्पत्ति कैसे सुरू होती है। १८- सृस्ती में तत्त्वों कम चक्र कैसे चलता है। १९ राशिः नाम से नहीं कर्म से बनती है २०- ग्यारह देव सागर शरीर में कैसे बहते हैं उनके तीर्थ कैसे किए जाते हैं जो सचमुच के तीर्थ होते हैं। २१- स्त्री व पुरूष की ताशिर अलग-अलग कैसे बने।जगद्गुरु महामहिम गुरुदेव कम आह्वान है की इस परिचर्चा में विश्व के सभी धर्म गुरु आमंत्रित हैं। हिंदू, मुस्लमान, सिक्ख ईसाई , जैन, पारसी बौध आदि, जगद्गुरु महामहिम गुरुदेव सभी धर्मों से खोया हुआ तत्त्व रत्ना अपने साथ लिए गंदिगी के ढेर पर बैठे हैं। जो भी धर्म पहल करेगा ये रत्ना उसे ही मुफ्त में मिल जाएगा नहीं तो विवश होकर जगद्गुरु महामहिम गुरुदेव स्वयं ही नए धर्म की स्थापना का काम शुरू कर देंगे। क्योंकि आज पूरा विश्व ही गंदिगी कम ढेर बाँट जा रहा है। आज कम मानव ज्ञान रहित हो गया है। इसके साथ ही वो भूतकाल की घटनाओं को ही अध्यात्म कम ज्ञान समझने लगा है। जबकि अध्यात्मिक ज्ञान तो सृस्ती की अद्रश्य शक्तियों के अनसुलझे रहस्यों को ही उजागर करना होता है। न की इतिहास की घटनाओं को दोहराते रहना ही। अध्यात्म किसी के घर की कहानी नहीं कहता , किसी के जीवन चरित्र कम बखान नहीं करता। ये ज्ञान लाखों वर्ष पहले हमारे ऋषियों के पास हुआ करता था जो अब नहीं है क्योंकि मानव अपने मार्ग से भटक गया है। वो भूतकाल में गोते लगा रहा है। वो इस बात से अनभिज्ञ है की इस शरीर के द्वारा क्या-क्या खोजा जा सकता है। ये महादुख की बात है लेकिन अब जगद्गुरु महामहिम गुरुदेव ये ज्ञान लेकर आ गए हैं। हमारे ज्ञान की क्रियाओं के द्वारा मानव अपने शरीर को अपनी मर्जी से त्याग सकता है। और इसी ज्ञान क्रिया को पूर्ण भक्ति और पूर्ण मुक्ति कहते हैं। भक्ति कभी मुख द्वार से नहीं की जाती है भक्ति तो किसी अन्य द्वार से ही की जा सकती हैजो की शरीर के जोड़-तोड़ को मिलाना होता है। ये वास्तव में जिन्दगी और मौत का खेल होता है जिसमे साधक ६ से ७ दिनों तक मृत अवस्था में पड़ा रहता है। और जीव शरीर से निकलकर ब्रह्माण्ड में भ्रमण करता है। वो देखता है की कहाँ क्या है कैसा है। इन सबका चित्र व आवाज टेप करके वापस आ जाता है। इस ग्रन्थ में ये साडी जानकारी विस्तार से दी गई है। परम पिता परमात्मा के रहस्य जानना ही मानव जीवन कम परम ध्येय है, ब्रह्माण्ड कम रहस्य क्या है इसे जानना ही मानव कम परम धर्म है। ये ग्रन्थ किसी धर्म से जुरा नहीं है। ये तो समस्त मानव जाती के लिए नियत है। कोई भी धर्म इसे अपने धर्म ग्रंथों में जोड़ सकता है। इसे जोड़कर वो धर्म सर्वोपरि हो जाएगा और वाही विश्व गुरु बनाकर मानवता कम कल्याण करेगा। क्योंकि ये ग्रन्थ सत्य और उसके प्रयोग पर आधारित है। इसलिए संसार के सभी धर्म ग्रन्थ इसके सामने फीके पड़ जायेंगे।

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