Monday 11 May 2009

ऋषियों का ज्ञान जिसे भूल गई दुनिया

ये ग्रन्थ किसी परिवार की कहानी नहीं है। इसमे महाराचयीता की पुरी महाशक्ति रचना को दर्शाया गया है। जिसमे मानव व जीव जंतु सबसे नीचे आते हैं। यदि नए धर्म की स्थापन होती है। तो सबसे अधिक नुकसान भारत में हिंदू धर्म को ही होगा जिसके जिम्मेदार सभी धर्म होंगे। इस ग्रन्थ की जानकारी विश्व के अनेक धर्मों को भी दी गई है और वो इसे पाना भी चाहते हैं। परन्तु महामहिम गुरुदेव ये ग्रन्थ का सौदा नहीं करेंगे महामहिम गुरुदेव ये संदेश अपना निजी कर्तव्य मानते हुए विश्व शान्ति के लिए दे रहे हैं। इस ग्रन्थ का सर्वाधिकार किसी एक धर्म को ही प्राप्त होगा कोई अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशक भी इसे ले सकता है। जिससे ये ज्ञान पुरे विश्व में फैले। हम देखते हैं की हमारे देश में अन्धविश्वास बहुत है। लोग लकीर के फ़कीर हैं ये लोग अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं। अपने तात्कालिक लाभ के बारे में सोचते हैं। इसलिए वो अपने भविष्य की रछा नहीं कर पाते येही लोग सरकार में हैं और अपने बारे ही सोचते हैं अपार जन मानस के बारे में नहीं सोचते इसका फायदा अन्य देशावाशी उठाते हैं हमारे ऋषियों ने जिन जडी बूटियों की खोज की , धातुओं के गुणों को समझा और आयुर्वेद के रूप में हमें सौंपा जिसकी रछा का भार हमारे ऊपर था लेकिन हम अपने पूर्वजों की अमानत को सुरछित नहीं रख पाए अब लकीर पीटने का कोई लाभ नहीं महामाया रत्तन की जानकारी ऊपर से लेकर नीचे तक यानि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री , धर्मगुरुओं आदि को पहुंचाई है लेकिन नतीजा वाही कोई परिणाम नहीं क्योंकि उन पास समाया नहीं है ये वो गद्दिसीन लोग हैं जिन्हें जगाना चाहिए लेकिन वो सो रहे हैं। इसकी सुचना हमने अन्य देशवासिओं को भी दी तो कई लोग हमसे मिलने आ गए क्योंकि अन्य देशवासी नै खोज में रहते हैं उसके बदले में उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े वो खोजते हैं महामहिम गुरुदेव ये संदेश सभी धर्मों को इसलिए देना चाहते हैं। क्योंकि इस ग्रन्थ पर सम्पूर्ण मानव जाती का बराबर का अधिकार है । इसलिए वो अपना फर्ज मानकर सभी को ये ख़बर देना चाहते हैं की बाद में कोई ये न कहे की हमें तो सूचना दी ही नहीं। इसलिए वो अपने फर्ज से अदा होना चाहते हैं। आज के सभी धर्म गुरु समझते हैं के विश्व में हमारा ही अध्यात्मिक ज्ञान सर्वश्रेष्ठ है। पर महामहिम गुरुदेव का महामाया सागर रतन मानव धर्म ग्रन्थ एक एइसा अध्यात्मिक ग्रन्थ है जिसमे पूरे ब्रह्माण्ड को मानव शरीर में ही दिखाया गया है। मानव शरीर के द्वारा ही पूरे ब्रह्माण्ड की खोज करने की पूरी तकनीक इस ग्रन्थ में मौजूद है। अद्रश्य शक्तियों से कैसे संपर्क किया जाता है। वे सभी क्रियायें इस ग्रन्थ में मौजूद हैं। ये सभी क्रियायें आज की क्रियाओं से अलग हैं जिनकी आज के गुरुओं को भनक तक नही है। क्योंकि ये ग्रन्थ आज से कई हजार वर्ष पहले मानव के आपसी संघर्षों के कारन समुद्र में डूब गया था और तब से मानव जाती सच्चे अध्यात्मिक ज्ञान से वंचित हो गई थी। ये दुःख का विषय है लेकिन आज उतने ही आनंद की बात है की महामहिम गुरुदेव उसी ग्रन्थ को लेकर भारत में आ गए हैं। जो की उत्तर भारत में मौजूद है।

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